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मंगलवार, 15 जनवरी 2013

सबसे बढिया चित्र

एक बार एक राजा ने चित्रकारों को बुलाया और कहा—मेरा चित्र बनाओ और जो सबसे बढिया चित्र बनाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा।

अनेक चित्रकार आए। राजा सभी की परीक्षा लेता गया। परीक्षा में आखिर तीन चित्रकार ठहरे, शेष सब फेल हो गए। तीनों ने चित्र बनाए।

राजा के सामने पहला चित्र आया। राजा ने देखा तो कहा—चित्र तो बहुत सुन्दर
बना है, पर झूठा बना है। बात यह थी कि राजा था काना। चित्रकार ने सोचा—अब काना कैसे दिखाऊं? इसलिए दोनों आंखें दिखा दीं। राजा ने कहा, चित्र असत्य है। मैं असत्य को पसन्द नहीं करता।

दूसरा चित्र देखा, चित्र बहुत भव्य था। राजा बोला, चित्र तो ठीक है, पर यह नग्न सत्य भी मुझे पसन्द नहीं है। उस चित्र में राजा को काना दिखाया गया था। राजा ने उसे अस्वीकार कर दिया।

तीसरा चित्र राजा ने देखा और मुग्ध हो गया। राजा ने कहा, कितना बढिया चित्र है। चित्रकार ने बड़ी निपुणता के साथ चित्र बनाया था। चित्रकार ने राजा को शिकार खेलते हुए दिखाया था। हाथ में धनुष। प्रत्यंचा तनी हुई। मुटी बंधी हुई और उसकी ओट में आंख आ गई है। न तो कानापन दिखाई देता है और न
ही झूठी बात। दोनों नहीं। राजा ने कहा, यह मुझे पसंद है, सबसे बढिया है और इसको प्रथम पुरस्कार दिया जाना चाहिए।

वह पुरस्कृत हो गया, जिसने सापेक्षता का प्रयोग किया। नग्न सत्य भी काम का नहीं होता, असत्य भी काम का नहीं होता। सापेक्षता से हमारा व्यवहार चलता है। मूल तत्व और परिवर्तन दोनों को एक साथ में दिखा देना, यह सापेक्षता है।

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