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गुरुवार, 14 मार्च 2013

कफ दोष

कफ दोष
 
- कफ यानी मिटटी और पानी का मिला जुला रूप।
- जीवन की शुरुवात यानी बचपन में हम कफ के प्रभाव में होते है। शरीर के निर्माण और विकास के लिए आवश्यक है।
- जिसमे कफप्रवृत्ति प्रधान हो वह शरीर से मज़बूत दिखेगा। उसका कृशकाय होना असंभव है। पर वह मोटा , फुला हुआ और थुलथुला भी नहीं लगेगा।
- यह शरीर में चिकनाहट के लिए और अंदरूनी गति के लिए आवश्यक है।
- कफ दोष के पांच भेद होते हैं / 1- श्‍लेष्‍मन कफ 2- स्‍नेहन कफ 3- रसन कफ 4- अवलम्‍बन कफ 5- क्‍लेदन कफ
- शरीर में इसका स्थान सर है।इसलिए बच्चों को सर में , कान में तेल अवश्य डालना चाहिए ; ताकि कफ कुपित ना हो।
- दिन की शुरुवात यानी अलसुबह और रात के प्रथम प्रहर में कफ बलवान होता है। इस समय यदि बच्चों को नींद आ रही हो और उन्हें सोने ना दिया जाए इससे उनकी याददाश्त , एकाग्रता प्रभावित होती है। वे बागी , जिद्दी और हिंसक तक हो सकते है। अमेरिका में जो बच्चों के हिंसक होने की वारदात सुनने में आ रही है वह कफ दोष के कुपित होने का नतीजा है। जब जब भी बच्चों को पढ़ते पढ़ते नींद आये , उन्हें एक झपकी ले लेने दे।
- ज़्यादा मीठा खाने से कफ कुपित होता है।
- कफ के प्रभाव के कारण बच्चों को हर चीज़ समझा के, कहानी रूप में सुनाने से उन्हें समझता है और वे जिद नही करते , हिंसक नहीं होते। इसके लिए अभिभावकों के पास समय होना आवश्यक है।
- कफ के प्रभाव में जो चीज़ याद हो जाए भूलती नहीं।इसीलिए बच्चों को हर चीज़ बोल बोल के रटाना उत्तम है। ये वो ज़िन्दगी भर नहीं भूलेंगे ; जैसे पहाड़े आदि।
- कफ प्रधान व्यक्ति यांत्रिक तरीके से बिना शारीरिक या मानसिक थकान के अच्छा कार्य कर सकता है। इंसानी गलतियों की संभावना कम होती है।
- कफ के साथ वात होने से सांस फूलेगी ; सूखी खांसी होगी और कफ के साथ पित्त होने से नाक बहेगी। इसलिए वात या पित्त संतुलित करने से ही समाधान हो जाएगा। साथ ही काफ ज़्यादा ना बने इस लिए नींद , मीठा कम खाना , सर में तेल आदि बातों का ध्यान दे। चना खाने से अतिरिक्त कफ सूख जाता है।

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