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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

ककड़ी का चिकित्सा में प्रयोग

ककड़ी ग्रीष्म ऋतु का फल है। ककड़ी का प्रयोग कच्ची अवस्था में ही किया जाता है। कच्ची ककड़ी में आयोडीन पाया जाता है। ककड़ी बेल पर लगने वाला फल है। गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्ध्दक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है।
ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्रकारक, वातकारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन करने वाली होती है।
उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्तविकार, मधुमेह में ककड़ी फायदेमंद हैं।

ककड़ी के अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती है, परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है। ककड़ी की ही प्रजाति खीरा व कचरी है। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज्यादा पायी जाती है। ककड़ी के बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।

1- ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृध्दि होती है।

2- ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है। बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है।

3- ककड़ी के बीजों को ठंडाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है।

4- ककड़ी की जड़ 10 ग्राम, एक कप दूध व एक कप पानी में मसलकर धीमी आंच पर पकाएं। जब दूध शेष रह जाय तब गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भावस्था में होने वाले उदरशूल से मुक्ति मिलती है।

5- ककड़ी की मींगी एक तोला, सफेद कमल की पंखुड़ी एक तोला, जीरा आधा चम्मच तथा मिश्री एक चम्मच, सभी को महीन पीसकर सेवन करने से श्वेत प्रदर रोग में लाभ होता है।

6- ककड़ी के बीज पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की त्वचा स्वस्थ व चमकदार होती है।

7- ककड़ी के रस में शक्कर या मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।

8- ककड़ी की मींगी मिश्री के साथ घोंटकर पिलाने से पथरी रोग में लाभ पहुंचता है।
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ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृध्दि होती है। ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है। ककड़ी से त्वचा चिकनी होती है। ककड़ी भूख को बढ़ाती है और मन को शांत करती है। इसके सेवन से दस्त रोग में लाभ मिलता है। यह गर्मी को शांत करती और बेहोशी को दूर करती है। पकी ककड़ी का उपयोग करने से गर्मी शांत होती है एवं पाचनशक्ति बढ़ती है। यह पित्त से उत्पन्न दोषों को दूर करती है। इसका सेवन अधिक मात्रा में करने से वातज्वर और कफ पैदा हो सकता है।

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