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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

8 मार्च से होलाष्टक शुरु - इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम करना अशुभ होगा


इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम करना अशुभ होगा
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8 मार्च से होलाष्टक शुरु
होली के महज एक हफ्ते ही बचे हैं। और इन एक हफ्तों में कोई भी शुभ काम नहीं होंगे। क्योंकि 8 मार्च से होलाष्टक शुरु हो रहा है।

शास्त्रों में कहा गया है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक का समय अशुद्घ होता है, यह होलाष्टक कहलाता है।

ज्योतिष के ग्रंथों में ‘होलाष्टक’ के आठ दिन समस्त मांगलिक कार्यों में निषिद्ध कहे गए हैं। माना जाता है इस दौरान शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है।
कामदेव के इस काम से होलाष्टक अशुभ
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इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि, भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भष्म कर दिया था।

कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भष्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गयी। कामदेव की पत्नी रति द्वारा शिव से क्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनायी।
होलाष्टक पर ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव
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होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित रहने के पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय मान्यता भी है। ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रुप लिए हुए रहते हैं।

इससे पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद व दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।
होलाष्टक में भगवान श्री कृष्ण की होली
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सामान्य रुप से देखा जाए तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिन का त्योहार है। भगवान श्रीकृष्ण आठ दिनों तक गोपियों के संग होली खेले।

दुलहंडी के दिन अर्थात होली के दिन रंगों में सने कपड़ों को अग्नि के हवाले कर दिए, तब से आठ दिनों तक यह पर्व मनाया जाने लगा।
होलाष्टक पूजन की विधि
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होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है।

जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारंभ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर होली का डंडा स्थापित किया जाता है वहां होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।

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