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रविवार, 27 जुलाई 2014

हिन्दुस्थानी संस्कृति के अनुसार :-जन्मदिन मनाया जाय

निस्संदेह अपना जन्मदिन अपने लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन है और जिस प्रकार हर वर्ष सामाजिक त्योहार मनाये जाते हैं, उसी प्रकार हमें अपना, अपने प्रियजनों का जन्मदिन मनाना चाहिए। जन्मदिन के अवसर पर मित्र-मिलन, के साथ पार्टी का आयोजन भी करते है हम। अपना जन्मदिन उल्लासपूर्ण वातावरण में मनाएँ ही-साथ ही अपने अनन्य मित्रों को भी उसके लिए अवश्य उत्साह एवं प्रेरणा दें।
१) पाश्चर्य संस्कृति के अनुसार :->

इन्विटेशन कार्ड [ invitation card ] , केक, मोमबत्ती , आइसक्रीम , चॉकलेट ,पिज़ा , सॉफ्ट ड्रिंक्स , रिटर्न गिफ्ट ,और जोरदार DJ का घोंघाट ! और उछल+कूद या फिल्म का प्रोग्राम ! बड़े लोगो के ले लिए शराब [ मदिरापान ] इत्यादि ....
इस में मुझे कई बात अच्छी न लगती एक तो मोमबत्ती को जलाओ फिर उसे फूंक मार के बुजादो ! अरे , केक सब खाने वाले है यानी उसे शुद्ध होना जरुरी है , और जिसका जन्म दिन है वो और उसके नजदीकी लोग भी उसे फूंक मारके बुझाते है उस समय उनके मुँह से निकली दुर्गंध वो भी बेक्टेरिया के साथ जो सूक्ष्म होती है वे केक पर चिपक जाती है ! कभी कभी तो थूंक के छींटे भी चिपक जाते है ! और वही केक सबको परोसा जाता है ! रिटर्न गिफ्ट ठीक है जिसकी जैसी आर्थिक शक्ति .... लेकिन देखा देखि में सब खींचे जाते है अपना सामजिक स्टेट्स दिखाने के लिए !
नकल में अक्ल का अभाव साफ़ दिखाई देता है। कई लोगो की मानसिकता ऐसी है की जो गोर लोग करे वही सत्य और आधुनकता है … ज्यादा पढ़े लिखे लोगो में यह बिमारी वायरल होगी है।
२)
हिन्दुस्थानी संस्कृति के अनुसार :->

सूर्योदय से पहले नित्य काम पूरा करके पूजा पाठ ,सूर्य दर्शन के साथ प्रार्थना , मातापिता और अपने से बड़ो का आशीर्वाद लेना , और पाठशाला में गुरूजी का आशीर्वाद लेना दिन चर्या में दान+दक्षिणा भी करना , लड्डू खाना मित्रो के साथ [ बुला कर ] आनंद + भोजन करना इत्यादि …

हिन्दुस्थान की संस्कृति में दीपक [ दिया ] प्रकाश का प्रतिक मान जाता हे जो अंधकार को दूर करता है। जिसे कभी कोई फूंक मारके नहीं बुझाता । प्रकाश हमारे जीवन में छिपे अँधक|र को दूर करने की प्रेरणा देता है।
ओर भी कई काम होते है जन्म दिन के लिए ........

समाज में प्रचलित प्रथाओं के अनुसार एवं अपनी स्थिति के अनुरूप जन्म दिन को एक हर्षोत्सव के रूप में मनाते है हम। अपने देश में भी यह प्रचलन सदा से था। मध्यकालीन अंधकार भरी अव्यवस्था में जहाँ हमने अपनी अनेक विशेषताएँ खोईं, वहाँ इस प्रेरणा पर्व का स्वरूप भी भूल गये। अब समय आ गया कि उस महत्त्वपूर्ण परंपरा का पुनः प्रचलन किया जाए।

जिसका जन्मदिन मनाया जाय उसके लिए यह आवश्यक है कि एकान्त में बैठकर आत्मचिन्तन करे। अपने आप से यह प्रश्र पूछे कि
(१)उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ?
(२)क्या वह उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उचित प्रयत्न कर रहा है ?
(३) यदि नहीं, तो उस भूल को कैसे सुधारा जाए ?
( ४ ) हमने हमारे समाज और राष्ट्र के लिए क्या योगदान दिया है ?

इन चार प्रश्रों पर जितनी ही गहराई के साथ विचार + मंथन किया जाएगा, जितना ही सही उत्तर ढूँढ़ निकाला जायेगा, जितना ही साहस भूलों को सुधारने के लिए एकत्रित किया जा सकेगा, उतना ही जन्मदिन मनाने का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता चलेगा।

इन आयोजनों से जीवन का स्वरूप, जीवन का उद्देश्य, जीवन का सदुपयोग और उसकी सफलता का मार्ग जानने में बहु मूल्य सहायता मिलेगी और यदि भूला हुआ मनुष्य अपने लक्ष्य की दिशा में सुव्यवस्थित रीति से चल पड़ा, तो इस संसार का, समाज का, संस्कृति का स्वरूप ही बदल जायेगा और धरती पर स्वर्ग अवतरण की, युग निर्माण की संभावना बढ़ेगी।

हमें ही नक्की करना है क्या सही है ……

वंदे मातरम ……

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