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बुधवार, 26 जून 2013

वर्षा ऋतु में कुछ खास प्रयोग

वर्षा ऋतु में कुछ खास प्रयोग
- ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हुआ शरीर वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे
बल प्राप्त करने लगता है।
- आर्द्र वातावरण जठराग्नि को मंद करता है।
- वर्षा ऋतु में वात-पित्तजनित व अजीर्णजन्य  रोगों का प्रादुर्भाव होता है, अतः सुपाच्य, जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला वात-पित्तनाशक आहार लेना चाहिए।
- वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, ज्वर आदि में अदरक व
तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से आराम मिलता है। एंटीबायोटिक्स लेने  की आवश्यकता नहीं पड़ती। \
- गर्मियों में शरीर के सभी अवयव शरीर शुद्धि का कार्य करते हैं, मगर चातुर्मास में शुद्धि का कार्य केवल आँतों, गुर्दों एवं फेफड़ों को ही करना होता है। इसलिए सुबह उठने पर, घूमते समय और सुबह-शाम नहाते समय गहरे श्वास लेने  चाहिए।

- चातुर्मास में दो बार स्नान करना बहुत ही हितकर है।
- इस ऋतु में रात्रि में जल्दी सोना और सुबह  जल्दी उठना बहुत आवश्यक है।
- भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग करें। नींबू वर्षाजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।
- गुनगुने पानी में शहद व नींबू का रस मिलाकर सुबह खाली पेट लें। यह प्रयोग सप्ताह में 3-4 दिन करें।
- दिन में सोने से जठराग्नि मंद व त्रिदोष प्रकुपित  हो जाते हैं। अतः दिन में न सोयें। रात को छत पर अथवा खुले आँगन में न सोयें।
- अति व्यायाम और परिश्रम, नदी में नहाना, बारिश में
भीगना वर्जित है। कपड़े गीले हो गये हों तो तुरंत बदल दें।
- वर्षा ऋतु में दमे के रोगियों की साँस फूले तो 10-20  ग्राम तिल के तेल को गर्म करके पीने से राहत मिलती है। ऊपर से गर्म पानी पियें।
- साधारणतया चातुर्मास में पाचनशक्ति मंद रहती है।  अतः आहार कम करना चाहिए। पन्द्रह दिन में एक दिन उपवास करना चाहिए।
- चातुर्मास में जामुन, कश्मीरी सेब आदि फल होते हैं।
उनका यथोचित सेवन करें।
- हरी घास पर खूब चलें। इससे घास और पैरों की नसों के बीच विशेष प्रकार का आदान-प्रदान होता है, जिससे
स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। - उबटन से स्नान, तेल की मालिश, हलका व्यायाम, स्वच्छ  व हलके वस्त्र पहनना हितकारी है।
- वातारवरण में नमी और आर्द्रता के कारण उत्पन्न
कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु गौशाला में निर्मित धूप व हवन
से वातावरण को शुद्ध तथा गौमूत्र युक्त फिनायल या गोमूत्र से घर को स्वच्छ रखें। - घर के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें। मच्छरों से सुरक्षा के लिए घर में गेंदे के पौधों के गमले अथवा गेंदे के फूल रखें और नीम के पत्ते, गोबर के कंडे व गूगल आदि का धुआँ करें।
- 1 से 3 लौंग भूनकर तुलसी पत्तों के साथ चबाकर खाने से सभी प्रकार की खाँसी में लाभ होता है।
- देर से पचने वाले, भारी तले, तीखे पदार्थ न लें।

- जलेबी, बिस्कुट, डबलरोटी आदि मैदे की चीजें,  बेकरी की चीजें, उड़द, अंकुरित अऩाज, ठंडे पेय पदार्थ व आइसक्रीम के सेवन से बचें।
- वर्षा ऋतु में दही पूर्णतः निषिद्ध है।
- नागरमोथा, बड़ी हरड़ और सोंठ तीनों को समान मात्रा में लेकर बारीक पीस के चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से दुगनी मात्रा में गुड़ मिलाकर बेर समान गोलियाँ बना लें। दिन में 4-5 बार 1-1 गोली चूसने से कफयुक्त खाँसी में राहत मिलती है।
- इस ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त करने वाले अदरक, लहसुन, नींबू, पुदीना, हरा धनिया, सोंठ, अजवायन, मेथी, जीरा, हींग, काली मिर्च, पीपरामूल का प्रयोग करें।
- जौ, खीरा, लौकी, गिल्की, पेठा, तोरई, जामुन, पपीता,
सूरन, गाय का घी, तिल का तेल तथा द्राक्ष आदि का सेवन करे ।
- ताजी छाछ में काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा, धनिया,
पुदीना डालकर दोपहर भोजन के बाद ले सकते हैं।
- उपवास और लघु भोजन हितकारी है। रात को देर से
  भोजन न करें
- बारिश की सर्दी लगने का अंदेशा हो तो एक लौंग मुंह में
रख देना चाहिये और घर जाकर मत्था जल्दी पोंछ  लेना चाहिये । बदन सूखा कर लेना चाहिये और बांये करवट थोड़ा लेट के दायाँ श्वास चालू रखना चाहिये । इससे बारिश में भीगने का असर नहीं होगा ।
- चातुर्मास के चार महीने भगवान् विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं ; इसलिए यह काल साधकों, भक्तों, उपासकों के
लिए स्वर्णकाल माना गया है.इस काल में जो कोई व्रत, नियम पाला जाता है वह अक्षय फल देता है, इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को यत्न पूर्वक चतुर्मास में कोई नियम लेना चाहिए .जिस प्रकार चीटियाँ आदि प्राणी वर्षाकाल हेतु अन्य दिनों में ही अपने लिए उपयोगी साधन-संचय कर लेते हैं,

उसी प्रकार साधक-भक्त को भी इस समय मे शास्त्रोक्त नियमों, जप, होम, स्वाध्याय एवं व्रतों का अनुष्ठान कर
सत्त्व की अभिवृद्धि एवं परमात्म-सुख प्राप्त करना चाहिए

नीम एक चमत्कारी वृक्ष

नीम एक चमत्कारी वृक्ष

नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है।
• नीम के पेड़ पूरे भारत में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए  हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है
जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है।
• भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर  नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। नीम हमारे लिए  अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञान में 'आज़ादिरेक्ता-
इण्डिका (Azadirecta-indica) अथवा Melia azadirachta कहते है।
गुण यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे  परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के  बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व  मज़बूत रहते हैं। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़
बीमारियों वगैरह से आज़ाद होता है और उस पर कोई  कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आज़ाद पेड़ कहा जाता है।
[1]भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय  को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।

[2]  घरेलू उपयोग नीम के वृक्ष की ठंण्डी छाया गर्मी से राहत देती है  तो पत्ते फल-फूल, छाल का उपयोग घरेलू रोगों में किया जाता है, नीम के औषधीय गुणों को घरेलू नुस्खों में उपयोग कर स्वस्थ व निरोगी बना जा सकता है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है, लेकिन इसके फ़ायदे तो अनेक और बहुत प्रभावशाली हैं और उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :--
• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है। • नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में  अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं,
वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर  इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर  पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज,  कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।
नीम के उपयोग से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है,
आप सभी से निवेदन है कि आप नीम  जैसी औषधि का अपने घर में जरूर प्रयोग करे और देश के विकास में सहयोग दे और स्वस्थ भारत और प्रगतिशील भारत का निर्माण करे और अपने धन को विदेशी कम्पनियों के पास जाने से रोके

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