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शनिवार, 14 जून 2014

मित्रों भूलकर भी भाग्य, संयोग, चमत्कार या परमात्मा की मर्जी जैसे शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करें।

[7:13pm, 13/06/2014] Kailash ladha O+ blood: सोच बदल दीजिये, सितारे बदल जायेंगे
कश्तियाँ बदलने की जरुरत नही
रुख बदल दीजिये, किनारे बदल जायेंगे।।

मित्रों भूलकर भी भाग्य, संयोग, चमत्कार या परमात्मा की मर्जी जैसे शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करें। अपने दिमाग में लिख लीजिये कि इस संसार में आपके भाग्य को बनाने में या बिगाड़ने में किसी को रूचि नहीं है।
आपकी अपनी सोच, मान्यताएँ, आपके कर्म, आपका हर पल भाग्य का निर्माण कर रहे होते हैं।

आप कंगाल बनकर भूखे मरो या करोड पति बन जीवन के सारे उपभोग करो परमात्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता। ईश्वर कानून बनाकर सो गया ये चुनाव आपको स्वयं करना है।

आपके जीवन या भाग्य का कोई यहाँ निर्णायक नहीं है। किसी को आपके जीवन की बर्बादी या विकास में रूचि नहीं है। इस संसार में सब कुछ 'परफेक्ट' नियम के अनुसार हीं घटित होता है।

तोड़ दो अपनी पुरानी मान्यताओं को, भाग्यवादिता को, बंद करीए परमात्मा से सारे दिन मांगना। तुम सागर से चम्मच भरो या ड्रम क्या वह तुम्हें रोक रहा है? बंद करिये ज्योतिषियों और तांत्रिको के पीछे भागना जो अपने जीवन का विकास करना नहीं जानते, जो आपके भीतर भाग्य, भविष्य, ऊपरी हवा, ग्रहों एवं ईश्वर की नाराजगी का भय पैदा कर आपको पंगु और लाचार बनाते हैं। अरे जिन्हें अपनी ही कुंडली नहीं मालूम, जो खुद अपने और अपने परिवार का भविष्य नहीं जानते उन भटके, लालची, अंधे लोगों के हाथ आप अपने जीवन की लगाम क्यों सौप रहे हो ? कोई शनि, मंगल, कोई ग्रह इस संसार में आपका भाग्य बनाने या बिगाड़ने के लिये नही घूमता। आप खुद ही अपने भय या विश्वास पैदा कर खुद ही उसके जाल में जकड़ कर लाभ या हानि उठाते हैं।|

फेंक दीजिए अपनी सारी नगों से भरी हुई अंगूठियाँ, ये घरों में लटके हुए तंत्र मंत्र और यंत्र, जो आपकी लाचारगी, कमजोरीयों, आपके डर और आत्मविश्वास की कमी को दर्शाते हैं, जो यह साबित करते हैं कि आपका स्वयं और परमात्मा पर बिल्कुल श्रधा नहीं है। बंद कीजिए परमात्मा को रिझाना, उसकी चापलूसी करना, वह तो हर फूल को पूर्णरूप से खिलने के लिए पैदा करता है। अमीरी परमात्मा की देन है, गरीबी आपका अपना चुनाव है, आपकी अपनी अज्ञानता है।

अरे
हमसे ज्यादा ईश्वर ने हमारा किया विचार है
खूब लुटाने बैठा वो लूट लो जो तैयार है

राधे-राधे...
[7:13pm, 13/06/2014] Kailash ladha O+ blood: मेरे जीवन का अनुभव हैं ये
मै सत्य की खोज में निकला था। इसलिये हस्त रेखा पर रिसर्च की, तीन वर्ष की रिसर्च के बाद पता चला की ये रेखाएँ तो मानसिक सोच के साथ बदलती रहती हैं। तो फिर भविष्य का निर्धारण कैसे करें। फिर ज्योतिष का अध्यन किया, तो उसमे मैंने देखा की अच्छे-बुरे कर्म को करके भविष्य को बनाया और बिगाड़ा जा सकता हैं। इससे भी संतुष्ट नही हुआ फिर दर्शन- शास्त्र का अध्ययन किया इसमें पाया कि हमारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा बुरा हो रहा हैं वो तो हमारे भावों का ही परिणाम हैं।
आप दान करने का कर्म करते हो तो उसके पीछे आपका विश्वास रूपी भाव जुड़ता हैं। स्टोन पहनते हो तो उसके पीछे भी भाव जुड़ता है की इसके पहनने से ये फल मिलेगा। तो जब सब-कुछ आपके मन के विश्वास से घटित हो रहा हैं तो ये आडम्बर क्यों अपना रहे है हम लोग। मूर्ती में कोई परमात्मा नही बसता बल्कि परमात्मा तो तुम्हारे विश्वास में बसता हैं। मूर्ती तो मात्र आधार बनती हैं।
हाँ आप लोगो के लिये अभी इन बातों से निकलना मुश्किल हैं क्योंकि लम्बे समय से आप इन सब से जुड़े हैं।
पर सत्संग करते रहिये मित्रों में आपको धीरे-धीरे वो सब कुछ बताऊंगा।

राधे-राधे...

शनिवार, 24 मई 2014

आज के युवा अपनी संस्कृती और मातृभाषा को भुलते जा रहे है ।

लाइक करने से अब कुछ नहीं होगा इसे आपके पेज पर रखिए जैसे मैंने रखा है .....
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आज के युवा अपनी संस्कृती और मातृभाषा को भुलते जा रहे है ।

>> आज मुजे स्वामी विवेकानंद का वो द्रश्य याद आ रहा है ।

एकबार विवेकानंद जी विदेश मे भाषण करने गये, तो वहाँ के अंग्रेज़ अधिकारीयो ने हाल पुछते हुये स्वामी जी से कहा की " HOW ARE YOU ?"

>> विवेकानंद जी :- " मैं एकदम ठिक हूँ । "

>> अंग्रेज़ अधिकारी को लगा की शायद स्वामी को अङ्ग्रेज़ी नही आती होगी तो उसने कहा
" सुप्रभात स्वामीजी, धन्यवाद आपका । आप यहाँ तक भाषण करने आये । "

>> विवेकानंद जी ने कहा " good morning welcome "

>> अधिकारी ने सोचा --- ये क्या ??? और उसने स्वामी से पुछा की स्वामी जी ........

***** जब मैंने आपको अङ्ग्रेज़ी मे पुछा तो आपने हिन्दी मे जवाब दिया और जब मैंने हिन्दी मे कहा तो आपने अङ्ग्रेज़ी मे जवाब दिया इसका मतलब मे नही समजा ।

यह खास पढ़ो >>>> स्वामी जी ने विन्रमता से कहा की जब आपने अपनी माँ का सन्मान किया तो मैंने मेरी माँ का सन्मान किया और जब आपने मेरी माँ का सन्मान दिया तो मैंने आपकी माँ को सन्मान दिया ।

>> जब की आज के युवा अङ्ग्रेज़ी मे बोलकर अपने आपको बडे आदमी मानते है और मातृभाषा मे बात करने मे उसे शर्म आती है ।

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good morning , भगवान के फोटो वाले पोस्ट बहुत रख लिए अब ऐसे लेख को फैलाने का काम करना है ......... क्या आप यह काम करेंगे ???? " हाँ " तो पहली टिप्पणी मे से यह लेख कॉपी करके सबको दे देना..........
ॐ शांति ॥ जयतु हिन्दी ॥ जयतु संस्कृतम ॥

"साँवरिया" की युवाओं से अपील

"साँवरिया" की युवाओं से अपील

‘काम करो ऐसा कि पहचान बन जाए,
हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जाए !
यह जिंदगी तो सब काट लेते हैं,
जिंदगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाए’!

donate blood & save life

अपनी प्रेमिकाओ को अपने "खून" से ख़त लिखकर भेजने वाले मेरे देश के"गुमराह नौजवानो" शहर के हॉस्पिटल में चलो और देखोकि खून की कमी के कारण कितनी ही माँओ की कोख उजाड़ जाती है.

अगर माता पिता के खून पसीने से बने "खून" की" कीमत" समझते हो तो जरुरत पड़ने पर समाज-हित में रक्तदान करो।।
register yourself at http://sanwariya.org/blood-donor-register/
http://sanwariya.org/blood-doner/

गर तू सच्चा नागरिक है तो.

सुप्रभातम् मित्रों,

"गर तू सच्चा नागरिक है तो...
जगह जगह यहाँ वहाँ तू मत थूक
मेहनत के पैसे को धुएँ मे मत फूँक
गलियों कूंचो मे तू कचरा मत फैला
हो सके तो खुद उठा अपना मैला ।

गर तू सच्चा नागरिक है तो...
बात बात पर तू प्रशासन को मत कोस
खुद काम कर जगा अपने अंदर का जोश
न खिला किसी को ,न खुद खा तू घूस
खूब चूसा है देश को,अब और मत चूस। "

आईये इन लाईनों को ही अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकता और जिम्मेदारियां मानते हुऐ सम्मानित, सबल और सुरक्षित भारतदेश के नागरिक होने का सपना साकार करें, तभी अच्छे दिन वास्तविकता में

मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

देसी फ्रिज

मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह परिचित थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से लाभ....

हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है। मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन के तो क्या कहने!!!!!!!!!!!!!

गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी अच्छा लगता है।
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पिते है ,इसकी तासीर गर्म होती है.यह वात भी बढाता है |
बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है |
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता ,इसका पानी संतुष्टि देता है.
मिटटी सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी ज़रूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है |मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते |

सावधानी
सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। बर्तन को ताजे पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं।

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