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रविवार, 29 मार्च 2015

मदर टरेसा ने pop john paul को ठीक क्यों नहीं किया ??


एक बार POP JOHN PAUL ने मदर टरेसा को संत की उपाधि दी !!
आप पूछेंगे किस आधार पर दी ???

आधार ये है की मदर टरेसा ने एक बार किसी महिला के शरीर पर हाथ रखा और उस महिला का गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया तो POP का कहना था की मदर टरेसा मे चमत्कारिक शक्ति है 
इसलिए वो संत होने के लायक है ! 

अब आप ही बताए क्या ये scientific है ???
की उन्होने ने किसी महिला पर हाथ रखा और उसका गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया ?
इस लिए मदर टरेसा संत होने के लायक है !

ये 100% superstition है अंध विश्वास है ! लेकिन भारत सरकार ने इसके खिलाफ कुछ नहीं किया !
अब अगर भारत के कोई साधू -संत ऐसा करे तो वो जेल के अंदर ! क्योंकि वो अंध विश्वास फैला रहे है !!

अब आप ही बताएं मदर टरेसा से बड़ा अंध विश्वास फैलाने वाला कौन होगा ??
अगर उसमे चमत्कारिक शक्ति होती तो उसने pop john paul के ऊपर हाथ क्यों नहीं रखा ???
अजीब बात ये है कि pop john paul को खुद parkinson नाम की बीमारी थी ! और 20 साल से थी ! 
(इस बीमारी मे व्यकित के हाथ पैर कांपते रहते हैं ! )
तो उस पर हाथ रख मदर टरेसा ने उसको ठीक क्यों नहीं किया ??

मदर टरेसा का एक मात्र उदेश्य सेवा के नाम पर भारत को ईसाई बनाना था !!
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और अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखें ! 

आखिर क्यों अधिकतर भारत के पढे लिखे डाक्टर,इंजीनियर ,वैज्ञानिक सब विदेश भागने को तैयार हैं ! brain drain In INDIA पूरी post पढ़े !


आखिर क्यों अधिकतर भारत के पढे लिखे डाक्टर,इंजीनियर ,वैज्ञानिक सब विदेश भागने को तैयार हैं ! 
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जब अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन रिटायर हो रहे थे तो राष्ट्रपति के तौर पर अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा कि " सोवियत संघ के ख़त्म होने के बाद हमारे दो ही दुश्मन बचे हैं, एक चीन और दूसरा भारत " | रोनाल्ड रीगन के बाद जो राष्ट्रपति आये उसने जो पहले दिन का भाषण दिया संसद में, उसमे उसने कहा कि "मिस्टर रोनाल्ड रीगन ने अपने आर्थिक और विदेश नीति के बारे में जो वक्तव्य दिया, उसी पर हमारी सरकार काम करेगी " | अमेरिका में क्या होता है कि राष्ट्रपति कोई भी हो जाये, नीतियाँ नहीं बदलती, तो रोनाल्ड रीगन ने जो कहा जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन, जोर्ज बुश और ओबामा उसी राह पर चले और आगे आने वाले राष्ट्रपति उसी राह पर चलेगे अगर अमेरिका की स्थिति यही बनी रही तो | 

तो दुश्मन को बर्बाद करने के कई तरीके होते हैं और अमेरिका उन सभी तरीकों को भारत पर आजमाता है | अमेरिका जो सबसे खतरनाक तरीका अपना रहा है हमको बर्बाद करने के लिए और वो हमको समझ में नहीं आ रहा है, खास कर पढ़े लिखे लोगों को | अमेरिका ने एक ऐसा जाल बिछाया है जिसके अंतर्गत भारत में जितने भी अच्छे स्तर के प्रतिभा हो उसको अमेरिका खींच लो, भारत में मत रहने दो | अब इसके लिए अमेरिका ने क्या किया है कि हमारे देश के अन्दर जितने बेहतरीन तकनीकी संस्थान हैं, जैसे IIT, IIM, AIIMS, आदि, उनमे से जितने अच्छे प्रतिभा हैं वो सब अमेरिका भाग जाते हैं | 

अमेरिका ने और युरोप के देशों ने अपने यहाँ के ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) को रोकने के लिए तमाम तरह के नियम बनाए हैं और उनके यहाँ अलग अलग देशों में अलग अलग कानून हैं कि कैसे अपने देश की प्रतिभाओं को बाहर जाने से रोका जाये | उधर अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देशों में ये परंपरा है कि आपको कमाने के लिए अगर विदेश जाना है तो फ़ौज की सर्विस करनी पड़ेगी, सीधा सा मतलब ये है कि आपको बाहर नहीं जाना है और उन्ही देशो में ये गोल्डेन रुल है कि अगर उनके यहाँ बहुतायत में ऐसे लोग होंगे तो ही उनको बाहर जाने देने के लिए अनुमति के बारे में सोचा जायेगा | और दूसरी तरफ तीसरी दुनिया (3rd World Countries) मे जो सबसे अच्छे दिमाग है उन्हें सस्ते दाम मे खरीदने के लिए उन्होने दूसरे नियम भी बनाए | हमारे देश का क्रीम (दिमाग के स्तर पर) उन्हे सस्ते दाम मे मिल सके इसके लिए हमारे यहाँ IIT खोले गये, ये जो IIT खड़े हुए हैं हमारे देश मे वो एक अमेरिकी योजना के तहत हुई थी | 

हमारे देश का क्रीम (दिमाग के स्तर पर) उन्हे सस्ते दाम मे मिल सके इसके लिए अमेरिका ने एक योजना के तहत आर्थिक सहायता दी थी IIT खोलने के लिए | आप पूछेंगे कि अमेरिका हमारे यहाँ IIT खोलने के लिए पैसा क्यों लगाएगा ? वो अपने यहाँ ऐसे संस्थान नहीं खोल लेगा ? क्यों नहीं खोल लेगा बिलकुल खोल लेगा लेकिन वैसे संस्थान से इंजिनियर पैदा करने मे उसे जो खर्च आएगा उसके 1/6 खर्च मे वो यहाँ से इंजिनियर तैयार कर लेगा | और इन संस्थानों में पढने वाले विद्यार्थियों का दिमाग ऐसा सेट कर दिया जाता है कि वो केवल अमेरिका/युरोप की तरफ देखता है | उनके लिए पहले से एक माहौल बना दिया जाता है, पढ़ते-पढ़ते | और माहौल क्या बनाया जाता है कि जो प्रोफ़ेसर उनको पढ़ाते हैं वहां वो दिन रात एक ही बात उनके दिमाग में डालते रहते हैं कि "बोलो अमेरिका में कहाँ जाना है" तो वो विद्यार्थी जब पढ़ के तैयार होता है तो उसका एक ही मिशन होता है कि "चलो अमेरिका" | IITs मे जो सिलेबस पढाया जाता है वो अमेरिका के हिसाब से तैयार होता है, कभी ये देश के अंदर इस्तेमाल की कोशिश करें तो 10% से 20% ही इस देश के काम का होगा बाकी 80% अमेरिका/युरोप के हिसाब से होगा | 

मतलब कि ये पहले से ही व्यवस्था होती है कि हमारे यहाँ के बेहतरीन दिमाग अमेरिका जाएँ | ये सारी की सारी सब्सिडी अमेरिका की तरफ से हमारे IITs को मिलती है नहीं तो IIT से बी.टेक. करना इतना सस्ता नहीं होता | इस तरह से हमारा हर साल ब्रेन ड्रेन से 25 अरब डॉलर का नुकसान होता है और अमेरिका को अपने देश की तुलना मे इंजिनियर 1/3 सस्ते दाम मे मिल जाते हैं. क्योंकि हमारा मुर्ख दिमाग़ बहुत जल्दी डॉलर्स को रूपये मे बदलता है | इस तरह से अमेरिका हर साल अपना 150-200 अरब डॉलर बचाता है. और हम…………………. अब आप कहेंगे की हम क्यों नहीं ब्रेन ड्रेन रोकने के लिए क़ानून बनाते हैं ? तो हमारे नेताओं को डर है कि जो रिश्वत उन्हे हर साल मिलता है वो बंद हो जाएगा और IIT को जो अमेरिकी धन मिलता है वो भी रोक दिया जाएगा | इस तरह से हमारे यहाँ का बेहतरीन दिमाग अमेरिका चला जाता है और हमारे यहाँ तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ापन ही फैला रहता है | अमेरिका को घाटा ये हुआ है कि उसके इंटेलेक्ट मे काफ़ी कमी आई है पिछले 25 सालों मे | आप अमेरिकी विश्वविद्यालयों के टॉपर्स की सूचि उठा के देखेंगे तो वहाँ टॉपर या तो एशियन लड़के/लड़कियां हो रहे हैं या लैटिन अमेरिकन | खैर अमेरिका से हमे तो कुछ लेना है नहीं | और अब ये हो रहा है की वहाँ के लोग भी एशियाई प्रतिभा का विरोध करने लगे हैं | 

इसी तरह हमारे संस्थान यहाँ सबसे अच्छे डॉक्टर निकालते हैं एम्स में से या किसी और अच्छे संस्थान से तो वो भी अमेरिका भागने को तैयार होते है | इसी तरह आईआईएम से निकलने वाले सबसे बेहतरीन विद्यार्थी भी अमेरिका भागने को तैयार होते हैं | तो अमेरिका ने एक जाल फ़ेंक रखा है, जैसे शिकारी फेंकता है कि हर वो अच्छी प्रतिभा जो कुछ कर सकता है इस देश में रहकर अपने राष्ट्र के लिए, अपने समाज के लिए, वो भारत से अमेरिका भाग जाता है |

इसको तकनीकी भाषा में आप ब्रेन ड्रेन कहते है, मैं उसे भारत की तकनीकी का सत्यानाश मानता हूँ, क्योंकि ये सबसे अच्छा दिमाग हमारे देश में नहीं टिकेगा तब तो हमारी तकनीकी इसी तरह हमेशा पीछे रहती जाएगी | आप सीधे समझिये न कि जो विद्यार्थी पढ़कर तैयार हुआ, वही विद्यार्थी अगर भारत में रुके तो क्या-क्या नहीं करेगा अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के, लेकिन वो दिमाग अगर यहाँ नहीं रुकेगा, अमेरिका चला जायेगा तो वो जो कुछ करेगा, अमेरिका के लिए करेगा, अमरीकी सरकार के लिए करेगा और हम बेवकूफों की तरह क्या मान के बैठे जाते हैं कि "देखो डॉलर तो आ रहा है", अरे डॉलर जितना आता है उससे ज्यादा तो नुकसान हो जाता है और हमको क्या लगता है कि अमेरिका जाने से ज्यादा रुपया मिलता है, हम हमेशा बेवकूफी का हिसाब लगाते हैं, आज अमेरिका का एक डॉलर 55 रूपये के बराबर है और किसी को 100 डॉलर मिलते हैं तो कहेंगे कि 5500 रुपया मिल रहा है | अरे, उनके लिए एक डॉलर एक रूपये के बराबर होता है और वहां खर्च भी उसी अनुपात में होता है | हम कभी दिमाग नहीं लगाते, हमेशा कैल्कुलेसन करते हैं | 

आज उनका एक डॉलर 55 रूपये का है, कल 70 का हो जायेगा या कभी 100 रूपये का हो जायेगा तो हमारा हिसाब उसी तरह लगता रहेगा | उस हिसाब को हम जोड़ते हैं तो लगता है कि बड़ा भारी फायदा है लेकिन वास्तव में है उसमे नुकसान | यहाँ लगभग 10 लाख रूपये में एक इंजिनियर तैयार किया जाता है इस उम्मीद में कि समय आने पर वो राष्ट्र के काम में लगेगा, देश के काम में लगेगा, राष्ट्र को सहारा देगा, वो अचानक भाग के अमेरिका चला जाता है, तो सहारा तो वो अमेरिका को दे रहा है और अमेरिका कौन है तो वो दुश्मन है, तो दुश्मन को हम अपना दिमाग सप्लाई कर रहे हैं | 

हमारे यहाँ से आजकल जो लड़के लड़कियां वहां जा रहे हैं उनको वहाँ कच्चा माल कहा जाता है और उनके सप्लाई का धंधा बहुत जोरो से चल रहा है | ऐसे ही सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में बॉडी शोपिंग की जा रही है और वहां इन सोफ्टवेयर इंजिनियर लोगों का जो हाल है वो खाड़ी देशों (Middle East) में जाने वाले मजदूरों से भी बदतर है | जैसे हमारे यहाँ रेलों में 3 टायर होते हैं वैसे ही 5 टायर, 6 टायर के बिस्तर वाले कमरों में ये रहते हैं | अमेरिका दुश्मन है और उसी दुश्मन की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के काम में हमारे देश के लोग लगे हैं | 

आप बताइए कि इससे खुबसूरत दुष्चक्र क्या होगा कि आपका दुश्मन आपको ही पीट रहा है आपकी ही गोटी से | अमेरिका कभी भी इस देश की तकनीकी को विकसित नहीं होने देना चाहता | इस देश के वैज्ञानिक यहाँ रुक जायेंगे, इंजिनियर यहाँ रुक जायेंगे, डॉक्टर यहाँ रुकेंगे, मैनेजर यहाँ रुकेंगे तो भारत में रुक कर कोई ना कोई बड़ा काम करेंगे, वो ना हो पाए, इसलिए अमेरिका ये कर रहा है | और अमेरिका को क्या फायदा है तो उनको सस्ती कीमत पर अच्छे नौकर काम करने को मिल जाते हैं | 

हमारे यहाँ के इंजिनियर, डॉक्टर, मैनेजर कम पैसे पर काम करने को तैयार हैं वहां पर और वो भी ज्यादा समय तक | यहाँ अगर किसी लड़के को कहो कि 10 बजे से शाम 5 बजे तक काम करो तो मुंह बनाएगा और वहां अमेरिका में सवेरे 8 बजे से रात के 8 बजे तक काम करता है तो तकलीफ नहीं होती है | कोई भी भारतीय अमेरिका गया है तो वो सवेरे सात बजे से लेकर रात के आठ बजे तक काम ना करे तो उसको जिंदगी चलानी भी मुश्किल है | 

और अमेरिका में भारत के लोगों के साथ कैसा व्यव्हार होता है ये भी जान लीजिये, अमेरिका मे यहाँ के लोगों को हमेशा दूसरी या तीसरी श्रेणी के नागरिक के तौर पर ही गिना जाता है | हम यहाँ बहुत खुश होते हैं की कोई भारतीय इस पद पर है या उस पद पर है लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और होती है | हमारे यहाँ के लोग कितने ही बुद्धिशाली हो या कितने ही बेसिक रिसर्च का काम किए हो लेकिन उनको कभी भी Higher Authority नहीं बनाया जाता है वहां, मतलब उनका बॉस हमेशा अमेरिकन ही रहेगा चाहे वो कितना ही मुर्ख क्यों ना हो | आनंद मोहन चक्रवर्ती का क्या हाल हुआ सब को मालूम होगा, पहले वो यहाँ CSIR मे काम करते थे, अमेरिका मे बहुत जल्दी बहुत नाम कमाया लेकिन जिस जगह पर उन्हे पहुचना चाहिए था वहाँ नहीं पहुच पाए, हरगोबिन्द खुराना को कौन नहीं जानता आपको भी याद होंगे, उनको भी कभी अपने संस्थान का निदेशक नहीं बनाया गया | नवम्बर 2011 में उनकी मृत्यु हो गयी, कितने अमरीकियों ने उनकी मृत्यु पर दुःख जताया और भारत के लोगों को तो हरगोबिन्द खुराना का नाम ही नहीं मालूम है, अपनी जमीन छोड़ने से यही होता है | ऐसे बहुत से भारतीय हैं, इन प्रतिभाशाली लोगों के बाहर चले जाने से हमे क्या घाटा होता है, जानते हैं आप ? हम फंडामेंटल रिसर्च मे बहुत पीछे चले जाते हैं, जब तक हमारे देश मे बेसिक रिसर्च नहीं होगी तो हम अप्लाइड फील्ड मे कुछ नहीं कर सकते हैं, सिवाए दूसरो के नकल करने के | मतलब हमारा नुकसान ही नुकसान और अमेरिका और युरोप का फायदा ही फायदा |

सबसे बड़ी बात क्या है, हमारे देश मे सबसे बड़ा स्किल्ड मैंन पावर है चीन के बाद, हमारे पास 65 हज़ार वैज्ञानिक हैं, दुनिया के सबसे ज़्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज हमारे देश मे हैं, अमेरिका से 4-5 गुना ज़्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज हैं भारत मे, अमेरिका से ज़्यादा हाई-टेक रिसर्च इन्स्टिट्यूट हैं भारत मे, अमेरिका से ज़्यादा मेडिकल कॉलेज हैं भारत मे, हमारे यहाँ पॉलिटेक्निक, ITI की संख्या ज़्यादा है, नॅशनल लॅबोरेटरीस 44 से ज़्यादा हैं जो CSIR के कंट्रोल मे हैं, इतना सब होते हुए भी हम क्यों पीछे हैं ? हम क्यों नहीं नोबेल पुरस्कार विजेता पैदा कर पाते ? 

हमारी सबसे बड़ी कमी क्या है कि हम किसी भी आदमी को उसके डिग्री या पोस्ट से मापते हैं | हमारा सारा एजुकेशन सिस्टम डिग्री के खेल मे फँसा हुआ है इसलिए कई बार बिना डिग्री के वैज्ञानिक हमारे पास होते हुए भी हम उनका सम्मान नहीं कर पाते, उनको जो इज्ज़त मिलनी चाहिए वो हम नहीं दे पाते | जहाँ नोबेल पुरस्कार विजेता पैदा हो रहे हैं वहाँ की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह डिग्री से बाहर है | हमारे यहाँ जो शिक्षा व्यवस्था है वो अँग्रेज़ों के ज़माने का है उन्होने ही डिग्री और इंटेलेक्ट को जोड़ के हमारे सारे तकनीकी संरचना (टेक्नोलॉजिकल इनफ्रास्ट्रक्चर सिस्टम) को बर्बाद कर दिया | अँग्रेज़ों के ज़माने मे ये नियम था कि अगर आप उनके संस्थानों से डिग्री ले के नहीं निकले हैं तो आपकी पहचान नहीं होगी |

चुकी उनके संस्थानों से कोई डिग्री लेता नहीं था तो उनकी पहचान नहीं होती थी | बाद मे उनके यहाँ से डिग्री लेना शुरू हुआ और आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ बहुत से बैरिस्टर हुए उस ज़माने मे जिन्होंने लन्दन से बैरिस्टर की डिग्री ली थी | उनके तकनीकी संस्थाओं मे अगर आप चले जाएँ डिग्री लेने के लिए तो पढाई ऐसी होती थी की आप कोई बेसिक रिसर्च नहीं कर सकते थे, और संस्थान से बाहर रह के रिसर्च कर सकते हैं तो आपके पास डिग्री नहीं होगी और आपके पास डिग्री नहीं है तो आपका रेकग्निशन नहीं है | हमारे देश में बहुत सारे उच्च शिक्षा के केंद्र रहे 1840 -1850 तक लेकिन अंग्रेजों की नीतियों की वजह से सब की सब समाप्त हो गयी और हमारे देश में किसी भी शासक ने इसे पुनर्स्थापित करने का नहीं सोचा | और उन Higher Learning Institutes में ऐसे ऐसे विषय पढाये जाते थे जो आज भी भारत में तो कम से कम नहीं ही पढाया जाता है | 

आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए धन्यवाद् और अच्छा लगे तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये | 

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जय हिंद 
Rajiv Dixit

रविवार, 15 मार्च 2015

नेत्र-ज्योति बढ़ाने और चश्मा छुड़ाने के लिए

नेत्र-ज्योतिवर्द्धक व्यायाम और प्राकृतिक उपाय

आँखों का स्वास्थ्य असंयमित और अनियमित जीवनशैली के कारण बिगड़ता है। आँखों की बनावट सूक्ष्म तथा पूर्ण हैं। आँखें उसी समय तक ठीक काम कर सकती हैं जब तक कनीनिका, जलीय द्रव, ताल और  ताल के पीछे रहने वाले द्रव स्वच्छ रहते हैं। इनमें से किसी के भी अस्वच्छ होने पर दृष्टि में दोष उत्पन्न हो जाता है। दृष्टिपटल, मध्य पटल, दृष्टि नाड़ी तथा दृष्टि केन्द्रों के रोगों से भी दृष्टि खराब हो जाती है।
छोटे अक्षरों को पढ़ने, सीने-पिरोने,चित्रकारी करने, स्वर्णकारी करने, घड़ीसाजी करने आदि से आँखों  पर  दबाव पड़ता है। कम प्रकाश में पढ़ने या कोर्इ अन्य कार्य करने से भी आँखों को हानि पहुँचती है। अधिक  प्रकाश जैसे सूर्य या आग की ओर बहुत देर तक देखना भी हानिकारक है। झुककर या लेटकर पढ़ने से भी आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सामने से आता प्रकाश भी आँखों के लिए अच्छा नहीं होता है। पढ़ते या लिखते समय प्रकाश हमेशा बार्इ ओर से या पीछे से आना आँखों के लिए सर्वोत्तम होता है।
आँखों की भीतरी बनावट और व्यवस्था इस प्रकार से है कि पूरी आयु तक हमारी आँखें स्वस्थ रह सकती हैं, लेकिन आधुनिक जीवन में पर्यावरण, गलत खान-पान, विटामिन की कमी, दूरदर्शन तथा फिल्म अधिक देखने से लोगों, विशेषकर बच्चों की आँखें खराब रहने, दृष्टि कमजोर हो जाने, जल्दी चश्मा लग जाने की शिकायत हो जाती है। थोड़ी-सी सावधानी से आँखों के रोगों से बचा जा सकता है और आँखों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
नींद कम लेने, लगातार नजला-जुकाम रहने, धुआं और धूल वाले स्थान पर रहने, आँखों की अच्छी तरह सफार्इ न करने आदि से भी आँखों की दृष्टि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आँखों के कुछ ऐसे व्यायाम हैं जिनका प्रतिदिन अभ्यास करने से नेत्र ज्योति सदा ही बनी रहती है और नेत्रों का आकर्षण एंव स्वास्थ्य भी सही रहता है। दृष्टि के सभी प्रकार के रोगों का मूल कारण आँखों की बाहरी पेशियों पर तनाव पड़ना है, जो धीरे-धीरे आँखों का आकार ही बदल देता है। पास की दृष्टि में नेत्र गोलक की लम्बार्इ बढ़ जाती है, जिससे दूर के पदार्थों को देखने में असुविधा रहती हैं दूर की दृष्टि तथा वृद्धावस्था की अल्प दृष्टि में नेत्र-गोलक संकुचित अवस्था में रहते है, जिससे पास की वस्तु को देखना कठिन हो जाता है।
आँखों के व्यायाम नेत्र संबंधी दोषो से मुक्ति पाने में व्यक्ति की पूरी मदद करते हैं। यहां कुछ नेत्र व्यायाम दिए जा रहे हैं, जिनके अभ्यास से आप नेत्र समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।
करतल विश्राम :
आँखे ढीली बंद करें। दोनों हाथों की हथेलियां प्याली की तरह बनाकर गाल की हड्डियों पर रखते हुए उनसे अपनी बंद आँखों को इस प्रकार ढकें कि हथेलियां आँखों को न छुएं। हथेलियों से आँखे ढकते समय ध्यान रखें कि न तो  आँखों पर कोर्इ दबाव ही पड़े और न ही कहीं से प्रकाश आ सके। हाथ और आँखें तनाव रहित रखें। मस्तिष्क को तनावमुक्त रखने के लिए बिल्कुल कालापन का अनुभव करें। सही रीति के करतल-विश्राम में कालापन देखने के लिए कोर्इ प्रयास न करें बल्कि बिना किसी प्रयास के सहज ही बिल्कुल कालापन का अनुभव होना चाहिए क्योंकि तभी आँखें और मस्तिष्क विश्राम की अवस्था में हो सकते हैं।
कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद आप हाथ हटाकर तेजी से आँखें मिचकाइए और आँखें खोलिए। अब आप देखेंगे कि आपकी आँखें अधिक ताजगीपूर्ण और शक्तिशाली हो गर्इ है।
करतल-विश्राम का अभ्यास दिन में चार-पाँच बार, दो से दस मिनट तक कर सकते हैं। आँखों पर अनावश्यक दबाव से उत्पन्न रोगों तथा मोतियाबिंद की शांति के लिए करतल-विश्राम बहुत लाभदायक है और इसे प्रतिघंटे कुछ मिनट तक अवश्य करना चाहिए।
करतल-विश्राम में काले रंग का ध्यान के साथ-2 मस्तिष्क को आरामदेह स्थिति में रखना भी आवश्यक है। सोचना बिल्कुल बंद कर दें। यदि ऐसा न कर सकें तो कम से कम मस्तिष्क को अशांत करने वाले विचार जैसे खराब स्वास्थ्य, मन की सुस्ती, चिंता, क्रोध, आदि से मुक्त रखें और इनके स्थान पर अच्छे स्वास्थ्य एवं सुखद विचार में महत्व दें।
पुतली घुमाने की क्रियाएं :
आँखों की मांसपेशियों और आँखों से संबंधित स्नायु को ताकतवर व तनाव रहित बनाने के लिए करतल-विश्राम के अलावा इन व्यायामों को भी करना चाहिए।
पुतलियों को उपर-नीचे घुमाएं। इसके लिए रीढ़ सीधी और गर्दन को स्थिर रखकर बिना सिर घुमाएं दोनों पुतलियों को उपर - नीचे घुमाए अथार्त दोनों पुतलियों को पहले उपर की ओर ले जाते हुए आकाश देखें और फिर नीचे लाते हुए धरती देखें। इस तरह सहजता से क्रमष: उपर नीचे छ: बार देखें।
पुतलियों को बाएं-दाएं घुमाएं, मानों पुतलियां क्रमश: बाएं-दाएं कान को देख रही हों। सहजता से ऐसा छ: बार करे।
पुतलियों को चक्राकार घुमाएं अर्थात पहले बाएं से दाऐ बड़ा से बड़ा गोला बनाते हुए गोलकार घुमाएं और फिर दाएं से बाएं घुमाएं। ऐसा चार बार सहजता से करें।
इस प्रकार ( उपर-नीचे, बाएं-दाएं और गोलाकार घुमाने की ) तीनों क्रियाएं पहले धीरे-धीरे और बाद में जल्दी-जल्दी करें। प्रत्येक क्रिया चार-छ: बार करने के बाद कोमलता से पलक झपकाकर आँखें बंद करके कुछ क्षण विश्राम कर लें।
इन्हें दो-तीन बार, बीच-बीच में विश्राम देकर दोहराया जा सकता है। पुतली घुमाने से नेत्र-पेशियों का तनाव हटकर बहुत आराम मिलता है और दृष्टि शक्ति बढ़ती है।

दृष्टि को बार-2 बदलने का अभ्यास करना चाहिए। दृष्टि को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाने या एक बिंदु को देखकर दूसरे बिंदु पर दृष्टि ले जाने को दृष्टि - ध्यानकहते हैं। अंगुठे के पास वाली तर्जनी उंगली अपनी आँखों के सामने 10 इंच की दूरी पर रखें। अब उंगली के उपरी सिरे पर दृष्टि जमाएं और उसे साफ-2 देखें। फिर उंगली को सीध में 20 फीट दूर कोर्इ बड़ी वस्तु जैसे खिड़की को देखें। दृष्टि को पास और दूर केंद्रित करें अर्थात बारी-बारी से दूर-पास देखें। यह क्रिया दस बार करने के बाद एक क्षण के लिए पलक झपकाकर विश्राम करें तथा दोहराएं। यह दृष्टि अनुसरण( Accommodation ) सुधारने के लिए विषेश गुणकारी है। स्वस्थ दृष्टि किसी एक बिंदु पर अधिक देर तक स्थिर नहीं रहती है बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलती रहती है।
पलक झपकाएं। पलक झपकाना अर्थात् पलकों को जल्दी-जल्दी बंद करने और खोलने की क्रिया से आँखों को आराम मिलता है, जिससे नजर तेज होती है। पलकें न झपका सकने का अर्थ है आँखों में तनाव और गड़बड़ी। इसलिए एकटक देखने की आदत पड़ने पर दिन में कर्इ बार पलकें झपकाने का अभ्यास करना शुरू करना चाहिए। जैसे एक बार में लगातार दस बाद पलक झपकना। पढ़ते समय भी प्रत्येक दस सेंकड़ में एक या दो बार पलक झपकनी चाहिए। पलक झपकने से आँखों की थकान मिटती है, आँख की पेशियां सिकुड़ने और फैलने से रक्त संचार सुधरता है। और अश्रु ग्रंथि से पर्याप्त तरल निकलते रहने से आँख साफ गीली और चमकदार रहती है।
हंसने और मुस्कराने का आँखों पर हितकारी प्रभाव पड़ता है और आँखों में एक मुग्ध कर देने वाली चमक आ जाती है। हंसने से दिल हल्का होता है, तनाव घटता है, और मानसिक तनावजन्य रोग जैसे थकान, चिंता, विषाद, चिड़चिड़ापन आदि मिटते हैं। प्रतिदिन चार-पांच किलोमीटर दौड़ने से जो व्यायाम होता है और उससे जो शारीरिक क्षमता बढ़ती है, उतनी ही पांच मिनट हंसने से बढ़ती है। कम से कम दिन में तीन बार खिलखिलाकर हंसना चाहिए। उन्मुक्त हंसी से मस्तिष्क से लेकर संपूर्ण नाड़ी-मंडल स्पंदित हो उठता है और फेफड़ों की अशुद्ध वायु शरीर से बाहर निकल जाती है। हंसने से न केवल मानसिक तनाव घटता है बल्कि रक्त संचालन और पाचन भी सुधरता है।
आँखों के लिए योगासन :
आँखों के सौंदर्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए अर्द्धमत्स्येंद्रासन उष्ट्रासन, धनुरासन, हस्तपादोत्तानासन, हलासन, सर्वांगासन, शीर्षासन आदि का नियमित अभ्यास होना चाहिए। इनमें से उष्ट्रासन की विधि यहाँ प्रस्तुत है-
उष्ट्रासन :
वज्रासन में बैठिए। अब एड़ियों को खड़ा करके उन पर दोनों हाथों को रखें। हाथों को इस प्रकार रखें कि अंगुलियाँ अंदर की तरफ अंगुश्ठ बाहर को हों।
श्वास अंदर भरकर सिर एवं ग्रीवा को पीछे मोड़ते हुए कमर को उपर उठाएं। शवास छोड़़ते हुए एड़ियों पर बैठ जाएं। इस प्रकार तीन-चार आवर्त्ति करें।
योगासनों से साथ-साथ प्रतिदिन सूत्र तथा जलनेति का भी अभ्यास करें। सप्ताह में तीन बार कुंजल करें। खुली हवा में सैर करे।
प्राकृतिक प्रयोग-
आँखों को प्रतिदिन ताजा शीतल पानी या त्रिफला के पानी से धोएं।
पढ़ते समय या टी वी देखते समय आँखों को झपकाते रहें।
कान में तेल, नाक में शुद्ध घी और आँख में मधु डालने से आँखे स्वस्थ रहती है।
आँखों के चारों ओर हाथों की उंगलियों से अच्छी तरह मालिश इस प्रकार करें कि आँखों पर दबाव न पड़े। इसके बाद ठंड़े पानी से आँखों को धोएं या ठंडे पानी की पट्टी रखें। ऐसा दिन में दो-तीन बार करे।  
अपने भोजन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन युक्त आहार का प्रयोग करें। हल्का तथा सुपाच्य भोजन करें। रोगी का 50 प्रतिशत भोजन कच्चा फल, सब्जी, रस, सलाद आदि  और 50 प्रतिशत पका सुपाच्य भोजन होना चाहिए।
नेत्र-ज्योति बढ़ाने और चश्मा छुड़ाने के लिए-बदाम-गिरी, सौंफ (बड़ी), मिश्री कूंजा-तीनों को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और किसी कांच के बर्तन में रख दें। प्रतिदिन रात में सोते समय 10 ग्राम की मात्रा 250 ग्राम दूध के साथ चालीस दिन तक निंरतर लें। इससे दृष्टि इतनी तेज हो जाती है कि चश्मे की जरूरत ही नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त इससे दिमागी कमजोरी, दिमाग की गर्मी, दिमागी तनाव और बातों को भूल जाने की बीमारी भी दूर हो जाती है।
बच्चों को उपरोक्त नुस्खा आधी मात्रा में दें। पूर्ण लाभ के लिए औषधि के सेवन के दो घंटे तक पानी न पीएं। नेत्र ज्योति के साथ-साथ याद्दाश्त भी बढ़ती है। कूंजा मिश्री न मिले तो साधारण मिश्री का प्रयोग करे।
सुबह उठते मुँह में पानी भरकर मुँह फुलाकर ठड़े जल से आँखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन में तीन बार करें।
आंवला, हरड़, बहेड़ा ( गुठली रहित ) समान मात्रा में लेकर उन्हें कूटकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन शाम को इसमें से 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण को कोरे मिट्टी या शीशे के बर्तन में एक गिलास पानी डालकर भिगो दें। सुबह इसको मसलकर छान लें। फिर इसके निथरे हुए पानी से हल्के हाथ से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धो लिया करें। इससे आँखों की ज्योति की रक्षा होती है और नजर तेज होती है। आँखों की अनेक बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। इस त्रिफला जल से निंरतर महीने दो महीने से कम नजर आना, आँखों के आगे अधेंरा छा जाना, सिर घूमना, आँखों में उष्णता, रोहें, खुजली, दर्द, लाली, जाला, मोतियाबिंद आदि सब नेत्र रोगों  का नाश होता है।
नेत्र रोगी उपचार के दौरान मैदा, चीनी, धुले हुए चावल, खीर, उबले हुए आलू, हलवा भारी तथा चिकनार्इ वाले भोजन, चाय, काफी शराब, अचार, मुरब्बे, टॉफियों, चॉकलेट आदि का सेवन न करें।
कद्दूकस किया हुआ आंवला या आंवला का मुरब्बा, पपीता, पका आम, दूध, घी, मक्खन, मधु, काली मिर्च, घी-बूरा, सौंफ-मिश्री, गुड़, सूखा धनिया, चौलार्इ, पालक, पत्तागोभी, मेथी पत्ती, कढ़ी पत्ती आदि कैरोटीन प्रधान प​त्तियों वाली वनस्पतियां, पालक या कढ़ी पत्ती युक्त दाल, अंकुरित मूंग, गाजर, बादाम, मधु आदि का सेवन आँखों के लिए हितकारी है।
इलायची के दानों का चूर्ण और शक्कर समभाग में लेकर उसमें एंरड का तेल मिलाकर चार ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह खाने से 40 दिनों में ही नजर की कमजोरी दूर हो जाती है। इससे आँखों में ठंड़क आती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
हरा धनिया पीसकर उसका रस निकालकर दो-दो बूंद आँखों में प्रतिदिन डालने से भी आँखों की ज्योति में वृद्धि हो जाती है।
यह लेख पुस्तक योग संदेश से लिया गया है।

रविवार, 8 मार्च 2015

शहद के साथ दालचीनी पाउडर

आर्थराइटिस का दर्द---
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* आर्थराइटिस का दर्द दूर भगाने में शहद और दालचीनी का मिश्रण बड़ा कारगर है। एक चम्मच दालचीनी पाउडर लें। इसे दो तिहाई पानी और एक तिहाई शहद में मिला लें। इस लेप को दर्द वाली जगह परर लगाएं। 15 मिनट में आपका दर्द फुर्र हो जाएगा।

बालों का झड़ना---
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* गंजेपन या बालों के गिरने की समस्या बेहद आम है। इससे छुटकारा पाने के लिए गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से धुल लें।

दांत दर्द में पहुंचाए राहत---
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* एक चम्मच दालचीनी पाउडर और पांच चम्मच शहद मिलाकर बनाए गए पेस्ट को दांत के दर्द वाली जगह पर लगाने से फौरन राहत मिलती है।
घटाता है कोलेस्ट्राल---

* करीब आधा लीटर चाय में तीन चम्मच शहद और तीन चम्मच दालचीनी मिलाकर पीएं। दो घंटे के भीतर रक्त में कोलेस्ट्राल का स्तर 10 फीसदी तक घट जाता है।


सर्दी जुकाम की करे छुट्टी---
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* सर्दी जुकाम हो तो एक चम्मच शहद में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर दिन में तीन बार खाएं। पुराने कफ और सर्दी में भी राहत मिलेगी।

बढ़ाए वीर्य की गुणवत्ता---
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* सदियों से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में वीर्य की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शहद का इस्तेमाल होता रहा है। वैद्य पुरुषों को सोने से पहले दो चम्मच शहद खाने की सलाह देते हैं। ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं उन्हें एक चम्मच शहद में चुटकी भर दालचीनी पाउडर मिलाकर मसूढ़ों पर लगाने के लिए कहा जाता है।

भगाए पेट का दर्द---
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* शहद के साथ दालचीनी पाउडर लेने पर पेट के दर्द से राहत मिलती है। ऐसे लोग जिन्हें गैस की समस्या है उन्हें शहद और दालचीनी पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करना चाहिए।

मजबूत करे प्रतिरक्षा तंत्र---
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* रोजाना शहद और दालचीनी पाउडर का सेवन करने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और आप वाइरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से भी बचे रहते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि शहद में कई तरह के विटामिंस और प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, जो आपकी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं।

बढ़ाए आयु---
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* पुराने समय में लोग लंबी आयु के लिए चाय में शहद और चालचीनी पाउडर मिलाकर पीते थे। इस तरह की चाय बनाने के लिए तीन कप पानी में चार चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाया जाता था। इसे रोजाना तीन बार आधा कप पीने की सलाह दी जाती थी। इस तरह से बनी चाय त्वचा को साफ्ट और फ्रेश रखने में मदद करती है।

घटाए वजन---
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* अब बात करे मोटापे की .......खाली पेट रोजाना सुबह एक कप गरम पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से फैट कम होता है। यदि इसका सेवन रोजाना किया जाए तो मोटे से मोटे व्यक्ति का वजन भी घटना शुरू हो जाता है।

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बुद्धि, शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक प्रयोग

बुद्धि, शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक प्रयोग....!

* हेमंत ऋतू में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है | इस समय पौष्टिक पदार्थों का सेवन कर वर्षभर के लिए शारीरिक शक्ति का संचय किया जा सकता है | 

* निम्नलिखित प्रयोग केवल १५ दिन तक करने से शारीरिक कमजोरी दूर होकर शरीर पुष्ट व बलवान बनता है, नेत्रज्योति बढती है तथा बुद्धि को बाल मिलता है | 

सामग्री :-
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बादाम ५ ग्राम
खसखस १० ग्राम
मगजकरी (ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, पेठा व लौकी के बीजों का समभाग मिश्रण) ५ ग्राम
कालीमिर्च ७.५ ग्राम
मालकंगनी २.५ ग्राम
गोरखमुंडी ५ ग्राम |

विधि :- 

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* रात्रि को उपरोक्त मिश्रण कुल्हड़ में एक गिलास पानी में भिगोकर रखें | सुबह छानकर पानीपी लें व बचा हुआ मिश्रण खूब महीन पीस लें | इस पिसे हुए मिश्रण को धीमी आँच पर देशी घी में लाल होने तक भुने | ४०० मि.ली. दूध में मिश्री व यह मिश्रण मिला के धीरे-धीरे चुसकी लेते हुए पियें |

* १५ दिन तक यह प्रयोग करने से बौद्धिक व शारीरिक बल तथा #नेत्रज्योति में विशेष वृद्धि होती है | 


* इसमें समाविष्ट बादाम, खसखस व मगजकरी मस्तिष्क को बलवान व तरोताजा बनाते हैं | मालकंगनी मेधाशक्तिवर्धक है | यह ग्रहण व स्मृति शक्ति को बढाती है एवं मस्तिष्क तथा तंत्रिकाओं को बाल प्रदान करती है | अत: पक्षाघात (अर्धांगवायु), संधिवात, कंपवात आदि वातजन्य विकारों में, शारीरिक दुर्बलता के कारण उत्पन्न होनेवाले श्वाससंबन्धी रोगों, जोड़ों का दर्द, अनिद्रा, जीर्णज्वर (हड्डी का बुखार) आदि रोगों में एवं मधुमेह के कृश व दुर्बल रुग्णों हेतु तथा सतत बौद्धिक काम करनेवाले व्यक्तियों व विद्यार्थियों के लिए यह प्रयोग बहुत लाभदायी है | 

* इससे मांस व शुक्र धातुओं की पुष्टि होती है |

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